प्रार्थना समाज सम्पूर्ण अध्ययन
प्रार्थना समाज भारतीय नवजागरण के दौर में धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए स्थापित समुदाय है।
प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पांडुरंग तथा महादेव गोविन्द रानाडे ने बंबई में 31 मार्च 1867 को की।
प्रार्थना समाज की पृष्ठभूमि 19वीं शताब्दी के प्रारंभ अथवा उससे भी पहले 18वीं शताब्दी में हुई कई घटनाओं से बन चुकी थी।
प्रार्थना समाज के आंदोलन ने राजा राममोहन राय द्वारा बंगाल में स्थापित ब्रह्मसमाज (1828) से प्रेरणा ग्रहण की और व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के स्वस्थ्य सुधार के लिए अपनी सारी शक्ति धार्मिक शिक्षा के प्रचार में अर्पित कर दी।
बंबई के पश्चात् धीरे-धीरे इसका विस्तार पुणे, अहमदाबाद, सतारा और अहमदनगर आदि स्थानों में भी हुआ।
प्रार्थना समाज के प्रमुख प्रकाश स्तंभों में आत्माराम पांडुरंग, वासुदेव बाबाजी नौरंगे, रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, महादेव गोविंद रानडे, वामन अबाजी मोदक और नारायण गणेश चंदावरकर थे।
प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत
ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का रचयिता है।
ईश्वर की आराधना से ही इस संसार और दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा, उसमें अनन्य आस्था-प्रेम, श्रद्धा, और आस्था की भावनाओं सहित आध्यात्मिक रूप से उसकी प्रार्थना और उसका कीर्तन, ईश्वर को अच्छे लगने वाले कार्यों को करना-- यह ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।
मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करना, ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है।
ईश्वर अवतार नहीं लेता और कोई भी एक पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो, अथवा जो पूर्णतः दोष-रहित हो।
प्रार्थना समाज का उद्देश्य प्रार्थना और सेवा द्वारा ईश्वर की पूजा करना था।
प्रार्थनासमाज के संरक्षण में दो बलकाश्रम और चलते हैं -
एक विले पार्ले (बंबई) में डी.एन. सिरूर होम और दूसरा सतारा जिले के वाई नामक स्थान में है।
दि डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी ऑव इंडिया नाम की संस्था, जो अछूतोद्धार के लिए प्रसिद्ध है, प्रार्थना समाज के एक कार्यकर्ता विट्ठल रामजी शिंदे द्वारा स्थापित हुई।
1917 में प्रार्थना समाज ने राम मोहन अंग्रेजी विद्यालय की स्थापना की।
प्रार्थना समाज भारतीय नवजागरण के दौर में धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए स्थापित समुदाय है।
प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पांडुरंग तथा महादेव गोविन्द रानाडे ने बंबई में 31 मार्च 1867 को की।
प्रार्थना समाज की पृष्ठभूमि 19वीं शताब्दी के प्रारंभ अथवा उससे भी पहले 18वीं शताब्दी में हुई कई घटनाओं से बन चुकी थी।
प्रार्थना समाज के आंदोलन ने राजा राममोहन राय द्वारा बंगाल में स्थापित ब्रह्मसमाज (1828) से प्रेरणा ग्रहण की और व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के स्वस्थ्य सुधार के लिए अपनी सारी शक्ति धार्मिक शिक्षा के प्रचार में अर्पित कर दी।
बंबई के पश्चात् धीरे-धीरे इसका विस्तार पुणे, अहमदाबाद, सतारा और अहमदनगर आदि स्थानों में भी हुआ।
प्रार्थना समाज के प्रमुख प्रकाश स्तंभों में आत्माराम पांडुरंग, वासुदेव बाबाजी नौरंगे, रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, महादेव गोविंद रानडे, वामन अबाजी मोदक और नारायण गणेश चंदावरकर थे।
प्रार्थना समाज के मुख्य नियम और सिद्धांत
ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का रचयिता है।
ईश्वर की आराधना से ही इस संसार और दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है।
ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा, उसमें अनन्य आस्था-प्रेम, श्रद्धा, और आस्था की भावनाओं सहित आध्यात्मिक रूप से उसकी प्रार्थना और उसका कीर्तन, ईश्वर को अच्छे लगने वाले कार्यों को करना-- यह ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।
मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करना, ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है।
ईश्वर अवतार नहीं लेता और कोई भी एक पुस्तक ऐसी नहीं है, जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो, अथवा जो पूर्णतः दोष-रहित हो।
प्रार्थना समाज का उद्देश्य प्रार्थना और सेवा द्वारा ईश्वर की पूजा करना था।
प्रार्थनासमाज के संरक्षण में दो बलकाश्रम और चलते हैं -
एक विले पार्ले (बंबई) में डी.एन. सिरूर होम और दूसरा सतारा जिले के वाई नामक स्थान में है।
दि डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी ऑव इंडिया नाम की संस्था, जो अछूतोद्धार के लिए प्रसिद्ध है, प्रार्थना समाज के एक कार्यकर्ता विट्ठल रामजी शिंदे द्वारा स्थापित हुई।
1917 में प्रार्थना समाज ने राम मोहन अंग्रेजी विद्यालय की स्थापना की।
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