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DNA technology bill passed from Lok Sabha

डीएनए तकनीक बिल लोकसभा से पास




अपराधियों, संदिग्धों, विचाराधीन कैदियों, लापता बच्चों और लोगों, आपदा पीड़ितों एवं अज्ञात रोगियों की पहचान के लिए डीएनए बिल लोकसभा में पास कर दिया गया। डीएनए तकनीक के इस्तेमाल के लिए इस बिल में एक डीएनए लैबरेटरी बैंक स्थापित करने के साथ डीएनए डेटा बैंकस्थापित करना भी है।

 

क्या है

डीएनए आधारित फरेंसिक टेक्नॉलजी का प्रयोग अपराधों को सुलझाने में किया जा सकता है। इस तकनीक से लापता लोगों, बिना पहचान वाले मृतकों, बड़ी आपदाओं में अधिक संख्या में हुई मृतकों की पहचान में काफी उपयोगी होता है। डीएनए तकनीक का प्रयोग सिविल केस सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है जिनमें बच्चे के जैविक माता-पिता की पहचान, इमिग्रेशन केस और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट जैसे कुछ महत्वपूर्ण आयाम शामिल हैं।

इन कारणों से डीएनए की है जरूरत 


इस बिल की जरूरत डीएनए डेटा बैंक नहीं होने के कारण खास तौर पर थी। इस वक्त करीब 3000 केस डीएनए प्रोफाइलिंग के हैं और लैबरेटरी में डीएनए डेटा बैंक नहीं होने के कारण इन्हें स्टोर करने की कोई सुविधा नहीं है।

बिल से जुड़ी ये प्रमुख चिंताएं

इस बिल के विरोध में विपक्ष का तर्क है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है क्योंकि इससे सरकार नागरिकों की गोपनीय जानकारी अपने पास रखना चाहती है। विपक्ष का यह भी तर्क है कि गोपनीयता को सुरक्षित रखने के लिए कोई सुरक्षित पैमाने तैयार नहीं किए गए हैं, इससे डेटा का दुरुपयोग भी हो सकता है।

डीएनए का रहस्य सुलझाने वाले हरगोविंद खुराना की अनसुनी बातें

हमारे डीएनए के आवश्यक कार्य और प्रथम सिंथेटिक जीन के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को हुआ था। उन्होंने पता लगाया कि हमारे डीएनए में मौजूद न्युक्लियोटाइड्स की स्थिति से तय होता है कि कौन से अमिनो एसिड का निर्माण होगा। ये अमिनो एसिड प्रोटीन बनाते हैं जो कोशिकाओं की कार्यशैली से जुड़ीं सूचनाओं को आगे ले जाने का काम करते हैं। इसके अलावा उन्होंने पूरी तरह से कृत्रिम जीन का निर्माण किया था। हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे।सन 1960 में उन्हें ‘प्रफेसर इंस्टीट्युट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया और उन्हें ‘मर्क एवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया। इसके पश्चात सन् 1960 में डॉ. खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रफेसर पद पर नियुक्त हुए। सन 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण कर ली।सन 1970 में डॉ. खुराना मैसचुसट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एम.आई.टी.) में रसायन और जीव विज्ञान के अल्फ्रेड स्लोअन प्रोफेसर नियुक्त हुए। तब से लेकर सन 2007 वे इस संस्थान से जुड़े रहे और बहुत ख्याति अर्जित की।डॉ. खुराना ने जीन इंजिनियरिंग (बायॉ टेक्नॉलजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए सन 1968 में डॉ. खुराना को चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। डॉ. हरगोविंद खुराना नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति थे। यह पुरस्कार उन्हें दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया था। इन तीनों ने डी.एन.ए. अणु की संरचना को स्पष्ट किया था और यह भी बताया था कि डी.एन.ए. प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है।नोबेल पुरस्कार के बाद अमेरिका ने उन्हें ‘नैशनल अकेडमी ऑफ साइंस’ की सदस्यता प्रदान की
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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